वो बचपन के क़िस्से, लूडो.. वो पासे
गिल्ली, वो डंडा, पतंगें........वो कंचे
वो मिट्टी की गुल्लक,वो फ़िल्मों की बकबक
वो काग़ज़ की ऐनक, कपड़े वो लकदक...
वो भूली सी मिस जी, वो टीचर की यादें
वो छोटा सा बस्ता, वो छोटी किताबें....
वो बचपन की यारी....... यारी के वादे
वो सतरंगी कॉमिक कोई जीवन में ला दे
वो मीठा चुराना....... चोरी से खाना...
वो मदरसे न जाना.... बहाने बनाना
वो वाटर कलर, वो रंगीन दुनिया
वो सुन्दर सा तोता,पिंजरे की मुनिया
वो ख़ाली सी जेबें, मचलते से सपने
वो बचपन के झगड़े, पराये वो अपने
वो पापा की डांट......... मेले वो हाट
राजा बेटा कहाना,वो जन्मदिन के ठाठ
वो जगमग दीवाली,मस्ती.. वो होरी
वो मम्मी की लोरी, वो सपनों की गोरी
बहुत याद आता है गुज़रा ज़माना
कोई लाके मुझे दे-दे मेरा बचपन सुहाना
बहुत प्यारी कविता ......
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया चैतन्य.....
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें जीवंत कर दी आपने ..वाह बहुत खूब... अभी तो हमारे छोटे छोटे बच्चे है अब पूछो मत कितना उधम मचाते हैं ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता जी.... बच्चे उधम न मचाएं तो बच्चे कैसे? बचपन की यही धमाचौकड़ी आगे चलकर सुनहरी यादें बनती हैं जिसे हम सब मिस करते हैं।
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