शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

फ़िल्मी फ़लसफ़ा


       


 मित्रों आज़ादी के बाद हिंदी फ़िल्म उद्योग ने बड़ी तरक्क़ी की.... बच्चेबूढ़े और जवान भले ही 'यंग इंडियान पहनते रहे हों लेकिन हिंदी फ़िल्में बड़े चाव से देखते आये हैंफ़िल्में देखने के लिए लोगों ने न जाने कौन-कौन से सद्कर्म किये हैं और आज भी उन वीरतापूर्ण सद्कर्मों की गाथाएं सगर्व सुनाई जाती हैं....
     लोग इल्म-ओ-तालीम की क़ीमत पर फ़िल्में देखने का पराक्रम दिखाते रहे हैं... फ़िल्मी तरानों और हाव-भावों पर बुज़ुर्गों के नथुने हमेशा फड़कते रहे, हालाँकि अपनी उम्र पर वे भी फ़िल्मों के ज़बरदस्त शौक़ीन रहे। हर पीढ़ी का ये रोना रहा कि फ़िल्में तो हमारे ज़माने में बनती थीं अब तो कूड़ा-कचरा परोसा जा रहा है... फ़िर भी फ़िल्में बन रही हैं और ख़ूब बन रही हैं नतीजाफ़िल्में पैदा करने में भी हमारा मुल्क़ अव्वल बना हुआ है और फ़िल्मी अभिनेताओं को देवी-देवताओं सरीखा रुतबा हासिल है.....मुझे तो अपना बचपन याद आता है जब हिंदी फ़िल्में आसानी से सुलभ नहीं थीं उन दिनों चुनाव के बाद मतगणना का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता था... अरे! चुनावी नतीजों के लिए नहीं उन फ़िल्मों के लिए जो मतगणना के दौरान दूरदर्शन पर दिखाई जाती थीं...
      कुल मिला कर कहने का तात्पर्य यह है कि सबकी तरह मुझे भी फ़िल्मे देखना बहुत पसंद था...... हिन्दुस्तान में फ़िल्मों की शुरुआत से लेकर आज तक की ढेरों फ़िल्में देखीं और अधिकाँश हिन्दी फ़िल्मों को देखकर मोटे तौर पर कुछ निष्कर्ष निकले हैं जो बिन्दुवार आपके समक्ष प्रस्तुत हैं....

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दुनिया में सर्वाधिक प्रेम विवाह हिन्दुस्तान में होते हैं.

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जीवन का एकमात्र लक्ष्य विवाह है.

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प्रेम(प्यार) का मतलब नायक का नायिका से प्रेम है जो उसे नायिका की सुन्दर देह में नज़र आता है.

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नायक सर्वाधिक सुन्दर कन्या से ही प्रेम करते हैं.

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नायिका सर्वाधिक सुन्दर होती है जबकि नायक की बहन अपेक्षाकृत कम सुन्दर होती है.

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बदसूरत व्यक्ति नायक नहीं हो सकता है.

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बदसूरत व्यक्ति दबाने/कुचले जाने के लिए होता है या फ़िर खलनायक होता है.

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नायक बनने के लिए ख़ूबसूरत चेहरे के साथ बलिष्ठ शरीर की ज़रुरत होती है.

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नायक होने के लिए व्यक्ति को हरफ़नमौला होना चाहिए जैसे उसे नर्तक/गवैया होने के साथ-साथ पराक्रमी योद्धा भी होना चाहिए.

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न्याय पाने/करने का एकमात्र तरीक़ा मार-धाड़ है.

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नायक/नायिका चाहे रेगिस्तान में रहते हों नाचने के लिए पहाड़ों पर जाते हैं कुछ तो सरहदें भी पार कर जाते हैं.

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सिर्फ़ एक बार की सहमति/ग़लती/ज़बरदस्ती मातृत्व की ख़ुशख़बरी/दुखख़बरी बन सकती है.

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किसी महिला/युवती को उल्टी आने का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मतलब है।

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अधिकाँश भारतीय फ़िल्में वय के लिहाज़ से सब के साथ समानता का व्यवहार करती हैबालिग़-नाबालिग़ का कोई भेद नहीं और इस दृष्टिकोण से हमारी फ़िल्में यौन शिक्षा का उत्तम और प्रभावशाली माध्यम हैं.

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जीवन में अधिकाँश समय बाज़ी खलनायकों के हाथ में रहती है जैसे 2.5 घंटे की फ़िल्म में 2 घंटे 15 मिनट खलनायक की मौज रहती है.

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भारत में दिल्लीपंजाबमहाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेश ही हैं और सिक्किमअरुणांचलमेघालयआसाममणिपुरनागालैंडत्रिपुरा जैसे प्रदेशों का कोई अस्तित्व नहीं है.

नोट- उपरोक्त निष्कर्ष अधिकाँश फ़िल्मों पर आधारित हैं इसमें सभी फ़िल्में शामिल नहीं हैं।

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