सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

नन्ही- मुन्नी घोटाली !!!


विकलांग कल्याण में 71 लाख का घोटाला

घोटालों के इस 'महायुग' में छोटी सी नन्ही-मुन्नी घोटाली !!!
(घोटाले की बोनसाई)
 

हुंह.... ये भी कोई बात हुई, हमें 'माननीयों' से ऐसी उम्मीद नहीं थी। ऐसे घोटाले तो 'छोटे-मोटे' घोटालेबाज़ों को शोभा देते हैं, नगर निगम का या विकास प्राधिकरण का 'क्वालीफाइड' अफ़सर हो, सरकारी अनुदान से चलने वाली किसी शैक्षणिक संस्था की प्रबन्ध समिति का 'प्रशिक्षित' प्रमुख हो या फिर बाढ़ राहत/ सूखा राहत आदि 
कार्यों का 'ज़िम्मेदार' कर्ता-धर्ता हो, किसी धार्मिक ट्रस्ट का 'धर्मपारायण' मठाधीश हो, किसी प्रवेश परीक्षा में जमा होने वाली रक़म का 'सक्षम पहरेदार' हो, नदी-नालों की साफ़-सफ़ाई कराने वाला 'साफ़ चाल-चलन' का कोई ओहदेदार हो, जंगलों में सरकारी अनुदान पर वृक्षारोपण कराने वाला कोई 'प्रकृति-प्रेमी' अफ़सर हो, ऊसर ज़मीन को उपजाऊ बनाने वाला कोई 'हरित-क्रांति का उपासक' हाक़िम हो या 'सीमित संसाधनों और सामर्थ्य' वाला कोई 'साधारण प्रशिक्षु खिलाड़ी' हो तो बात कुछ जँचती, हमें उनसे ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद रहती है। 

एक बेहतरीन घोटालेबाज़ अगर दांत खोदकर थूक दे तो ऐसी 10-20 घोटाली ज़मीन पर लोटती मिलेंगी, एक उम्दा घोटालेबाज़ प्रशिक्षण अवधि(training period) में भी ऐसी घोटाली नहीं करता, अच्छे घोटालेबाज़ों के नौसिखिया चेले परीक्षा में इस तरह के प्रोजेक्ट/अधिन्यास(assignment) जमा करते हैं।

हम हिन्दुस्तानी लोग हैं और घोटालाप्रूफ हो चुके हैं और 60 सालों में बड़ी त्याग तपस्या से यह सिद्धि प्राप्त की है..... बड़े-बड़े क्रांतिकारी घोटालेबाज़ों ने बड़े परिश्रम, कौशल और अद्वितीय चातुर्य से हमें इस योग्य बनाया है.... हम उन महान घोटालेबाज़ों की समृद्ध परम्परा और उनके नाम पर प्रकार का बट्टा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे.... घोटालों के इस स्वर्णयुग में इस तरह के घटिया प्रदर्शन पर हमें सख्त ऐतराज़ है, यह हमारी ग़रीबी का भी मज़ाक़ है..... बताओ! वैश्विक स्तर पर हम लोगों को क्या मुँह दिखायेंगे कि हिन्दुस्तान में घोटालेबाज़ों का स्तर इतना गिर गया है कि ऐसी घोटाली पैदा कर रहे हैं?

मेजर ध्यानचंद के मुल्क़ में हाकी की दयनीय दशा पर हम ख़ूब छाती कूटते हैं। इसी तरह मज़बूत घोटालों की समृद्ध परम्परा के इस देश में ऐसा सतही मुज़ाहिरा हमें नागवार गुज़रा है, हम जानते हैं हमारी बेंचस्ट्रेंथ बहुत दमदार है, एक से बढ़कर एक पराक्रमी 'खिलाड़ी' मौक़े के इंतज़ार में हैं.... और जब खिलाड़ी अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप 'खेल' न दिखा पाए तो यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि उसे टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये और नए जोशीले और मज़बूत कन्धों वाले 'हुनरमंद' खिलाड़ियों को मौक़ा दिया जाए।

                              ◘◘◘◘◘◘◘◘ ND ◘◘◘◘◘◘◘◘

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, ई. प्रदीप कुमार साहनी जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है....
    आपके आमंत्रण की सहर्ष स्वीकरोक्ति....... धन्यवाद

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  2. घोटा जा सकता नहीं, कह बेनी अपमान ।

    बड़े खिलाड़ी बेंच पर, रे नादाँ सलमान ।

    रे नादाँ सलमान, जहाँ अरबों में खेले ।

    अपाहिजी सामान, यहाँ तू लाख धकेले ।

    इससे अच्छा बेंच, धरा पाताल गगन को ।

    बेनी को हो गर्व, बेंच दे अगर वतन को ।।

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    1. वाह क्या ख़ूब कहा आपने रविकर जी... ब्लॉग पर आगमन का स्वागत.... शुक्रिया और आभार।

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  3. एक से बढ़कर एक खिलाडी भरे पटे है देश में ..घोटाले से नेता के इमेज जुडी है आजकल ..कौन छोटा है कौन बड़ा घोटाले में ...बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति

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  4. बहुत जबरदस्त कटाक्ष समीचीन सम्प्रेषण बहुत बधाई आपको

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  5. आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ आना सार्थक रहा जुड़ गई हूँ आपके ब्लॉग से | वक़्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आइये आपका स्वागत है http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/

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    1. राजेश कुमारी जी धन्यवाद स्वीकार करें..... निश्चय ही आपके ब्लॉग पर आऊंगा।

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  6. वैसे भी निर्दोष भाई जिस इलाके के ये रहने वाले हैं वहां का मुहावरा है :आदमी गू खाए तो हाथी का खाए कमसे कम पेट तो भरे .जो शरीर से ही बाधित थे प्रजनन की कुदरत के मारे थे ये उनकी पहियेदार कुर्सी और

    बैसाखियाँ ही खा गये . बड़े जिगरे की बात है .छोटी बात नहीं है .

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    1. वीरेन्द्र जी ब्लॉग आगमन पर आपका स्वागत.... आभार, सही कहा आपने इन लोगों के जिगरे पर weather coat लगा हुआ है जिसपर दाग़ लगते तो हैं लेकिन टिकते नहीं.... शिंदे साहब ने फ़रमाया है कि हिन्दुस्तान की जनता सब भूल जाती है....


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