हम भी अपनी दुआओं का असर देखेंगे
रहे गर तो हम भी कल शहर देखेंगे...
मुहौब्बत का पैग़ाम पहुंचा है कहाँ तलक
रब्त-ओ-रक़ाबत के दिलकश मंज़र देखेंगे...
हमने डाले हैं सफ़ीने बुलंद हौसलों से
कैसे रोकेगा हमें, समंदर देखेंगे.......
शमशीर के साए में पलती है ज़िन्दगी
कैसे चलते हैं दिल पे नश्तर देखेंगे....
हमने तो की है दुआ तेरी ख़ुशियों की
बस इक उम्मीद से तेरी नज़र देखेंगे...
रात मुश्किल है यक़ीनन,कट ही जायेगी
ख़ुदा ने चाहा तो इक दिन सहर देखेंगे...
सुना है तेरी राहों में काँटे बहुत हैं
मुहौब्बत की ख़ातिर हम रहगुज़र देखेंगे...
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद को मुहताज नहीं फिर भी दिल से निकला वाह वाह ...
जवाब देंहटाएं(कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये)
सुनील जी बहुत-बहुत शुक्रिया....मेरे कुछ मित्रों की इच्छा पर वर्ड वैरिफिकेशन लिखने पड़े...
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना!!!
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