मंगलवार, 24 जनवरी 2012

अपनी क़लम नुकीली कर लूं...


अनगढ़े ख़्वाब न जाने कितने, दिल की मिट्टी में बोने हैं
ख़यालात न जाने कितने, उनके दिल में चुभोने हैं
अपने अंतस की धरती और ज़रा सी गीली कर लूं
चलूँ अपनी क़लम मैं और ज़रा सी नुकीली कर लूं...

आसान अगर हो तो, वो मुश्किल कैसी
दो पल में मयस्सर हो, तो वो मंज़िल कैसी
चलूँ अपनी राहें मैं और ज़रा सी पथरीली कर लूं
चलूँ अपनी क़लम मैं और ज़रा सी  नुकीली कर लूं.... 

बातों के झूठे सुर लोगों को भाते हैं
सच्चाई के शूल, दिल में गड़ जाते हैं
आवाज़ मैं अपनी कैसे इतनी सुरीली कर लूं
चलूँ अपनी क़लम मैं और ज़रा सी नुकीली कर लूं

3 टिप्‍पणियां:

  1. बातों के झूठे सुर लोगों को भाते हैं
    सच्चाई के शूल, दिल में गड़ जाते हैं
    आवाज़ मैं अपनी कैसे इतनी सुरीली कर लूं
    चलूँ अपनी क़लम मैं और ज़रा सी नुकीली कर लूं

    Bahut Sunder.....

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  2. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति ...

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