जब भी तेरा ख़याल आता है
ज़ेहन में इक सवाल आता है
मेरी गली से रोज़ ही गुज़रते हो
फ़िर अजनबी से क्यों लगते हो
दूर से देखता हूँ तो न जाने क्यूँ
आदमी भले से लगते हो...
आने-जाने के तेरे जो ये सिलसिले हैं
दिल की ख़ामोशी में बड़े वलवले हैं
अपने ख़यालात को परवाज़ दी थी
इक दिन मैंने तुम्हें आवाज़ दी थी
ठिठके तो इक लम्हा,जाने क्यूँ न रुके
मेरी आवाज़ तुम शायद न सुन सके
इसका गिला न मुझे कोई शिकवा है
मेरे शहर की ही कुछ ऐसी हवा है
तेरे क़दमों पे कोई क़दम नहीं रखता
मेरे ज़ख्मों पे कोई मरहम नहीं रखता
तेरी आँखों में इक तलाश नज़र आती है
तेरे अरमानों की लाश नज़र आती है
मेरे दर पर कभी ठहर कर देखो
मुझको भी कभी नज़र भर देखो
यक़ीनन अंजाम कुछ बेहतर मिलेगा
आने-जाने का सिलसिला तो क़यामत तक चलेगा.....
ज़ेहन में इक सवाल आता है
मेरी गली से रोज़ ही गुज़रते हो
फ़िर अजनबी से क्यों लगते हो
दूर से देखता हूँ तो न जाने क्यूँ
आदमी भले से लगते हो...
आने-जाने के तेरे जो ये सिलसिले हैं
दिल की ख़ामोशी में बड़े वलवले हैं
अपने ख़यालात को परवाज़ दी थी
इक दिन मैंने तुम्हें आवाज़ दी थी
ठिठके तो इक लम्हा,जाने क्यूँ न रुके
मेरी आवाज़ तुम शायद न सुन सके
इसका गिला न मुझे कोई शिकवा है
मेरे शहर की ही कुछ ऐसी हवा है
तेरे क़दमों पे कोई क़दम नहीं रखता
मेरे ज़ख्मों पे कोई मरहम नहीं रखता
तेरी आँखों में इक तलाश नज़र आती है
तेरे अरमानों की लाश नज़र आती है
मेरे दर पर कभी ठहर कर देखो
मुझको भी कभी नज़र भर देखो
यक़ीनन अंजाम कुछ बेहतर मिलेगा
आने-जाने का सिलसिला तो क़यामत तक चलेगा.....
वाह बहुत खूब दोस्त. बार बार पढ़ने को दिल करता है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमित जी....
जवाब देंहटाएंOptimistic thought........very very nice.
जवाब देंहटाएंवाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने ....
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