तेरे दामन की जो ये दिलकश ख़ुश्बू है
कितने ही फूलों की शहादत की दास्ताँ है...
उनके ज़ुल्मों से पामाल हो गए हम से कितने
कैसे कह दूं जो उनका है वही मेरा पासबाँ है...
ख़ामोशी घुली है जो हवाओं में हर सिम्त
अमन का नहीं ये ज़िन्दा मुर्दों का कारवां है ...
ज़मी-आसमां, दस्त-ओ-पा,ख़ूँ, ख़ुदा एक हैं
जाने क्यों सिख, हिन्दू तो कोई मुसलमां है...
हर शख़्श राज़ी है यहाँ क़तील बनकर
दिल-ए-नादाँ तू फ़िर क्यूँ इतना परेशां है...
reminded me my old school days ...nice...thanks a lot!
जवाब देंहटाएंReally very niceeeeee
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