गुरुवार, 6 मार्च 2014

चुनावी मौसम

कर कमल को हमारे 'कर-कमल' ने मरोड़ा है
तोड़ा किसी ने भी हो मगर दिल तो तोड़ा है

तप रहे हैं हम सुर्ख़ लाल फ़ौलाद से
क्या करें मगर उनके हाथ में हथौड़ा है

हिन्दू-मुस्लिम कभी वर्ग-ज़ात-भाषा के नाम पर
बंट गया मुल्क़,हमको कहीं का न छोड़ा है

हमने ख़ुद ही बना ली हैं अपनी अपनी सरहदें
यही कामयाबी उनकी औ अपनी राह का रोड़ा है

मुहौब्बत की राह पे, इल्म-ओ-अमन की बातें
रुख़ हवाओं का जहां में इन्हीं बातों ने मोड़ा है

जब भी आता है मस्त करके वार करता है
रहना होशियार, ये मौसम बड़ा निगोड़ा है

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