शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

आल्हा या वीर छंद

प्रेम भाव और सत्य अहिंसा, नीति हमारी रही महान 
विश्व बन्धु है हम यह कहते,सदा चले हम ऐसा मान

छेड़ा हमको किन्तु किसी ने, तो उसकी आफ़त में जान
यम सम बनकर टूट पड़ें जो, ऐसे अपने वीर जवान

एक पड़ोसी अपना ऐसा, जो समझो पूरा शैतान
करे सदा नापाक हरकतें, नाम धरे है पाकिस्तान

सन इकहत्तर था जब उसने, काम किया ऐसा उद्दंड 
ललकारा सीमा पर उसने, रण भीषण तब हुआ प्रचंड

सबक़ सिखाया ऐसा हमने, और दिया तब ऐसा दंड
क़ैद किये तब बैरी सारे, देश कर दिया खंड-विखंड

वीर जवानों ने तब अपने, युद्ध मचाया था घमसान 
रिपुदल सगरे पस्त हो गए, और पड़े मुश्किल में प्रान

होली अरि शोणित से खेलें, बाज़ी अपनी जान लगाय
कम न पड़े तब सीने अपने, भले गोलियाँ कम पड़ जाय

शूर महा अपने वीरों ने, प्राण किये हँसकर क़ुर्बान
लाल देश के सच्चे हैं ये, शान हमारी वीर जवान



( शिल्प- 16-15 पर यति पदांत गुरु-लघु )

©रचना- निर्दोष दीक्षित