इक किरन सी नज़र आती है,इस धुन्ध
में;कुहास में
हर लम्हा ज़िन्दगी भरता हूँ इस मिट्टी की लाश में
सब कुछ मयस्सर है, जाने वो लम्हें कहाँ हैं ?
अब तो मेरी मसरूफ़ियत है बस फ़ुर्सत की तलाश में...
हर लम्हा ज़िन्दगी भरता हूँ इस मिट्टी की लाश में
सब कुछ मयस्सर है, जाने वो लम्हें कहाँ हैं ?
अब तो मेरी मसरूफ़ियत है बस फ़ुर्सत की तलाश में...
जान जाती है किसी की,किसी
से मतलब क्या है
जोड़ दे दिलों को ऐसा कोई मज़हब क्या है ?
सिखा दे दिलों को मुहौब्बत करना;
ऐसा कहीं कोई मकतब क्या है?
दिल सुनता जो कभी दिमाग़ की;
जोड़ दे दिलों को ऐसा कोई मज़हब क्या है ?
सिखा दे दिलों को मुहौब्बत करना;
ऐसा कहीं कोई मकतब क्या है?
दिल सुनता जो कभी दिमाग़ की;
तो
ज़िन्दगी की दुश्वारियां न होतीं...
फ़िर यूँ दिल को समझाने का सबब क्या है?
फ़िर यूँ दिल को समझाने का सबब क्या है?
या ख़ुदा बस इतनी दुआ रखना
ज़िन्दा हूँ,मरने तक ज़िन्दा रखना....
ज़िन्दा हूँ,मरने तक ज़िन्दा रखना....
किसी ने कहा सीप में गिर, बूँद इक मोती हो जाये
बूँद ने कहा जीवन सफल,यदि प्यासे के मुख में जाए
बूँद ने कहा जीवन सफल,यदि प्यासे के मुख में जाए
उजाले की तिजारत करते अँधेरे
सूरज तो निकले रोज़ सुबहो-सवेरे
मूँद कर आँखें लोग पट्टियां धरे
सूरज बेचारा करे तो क्या करे ?
अपनी ज़ियारत, ज़िया के लिए
आयें आप भी,बन जाएँ काफ़िले
सूरज तो निकले रोज़ सुबहो-सवेरे
मूँद कर आँखें लोग पट्टियां धरे
सूरज बेचारा करे तो क्या करे ?
अपनी ज़ियारत, ज़िया के लिए
आयें आप भी,बन जाएँ काफ़िले
कुछ समझ नहीं आता कि
खेल क्या है
तेरा मेरा ये मेल
क्या है ....
रौशनी कुछ देर कौंधी
ज़रूर थी
बाक़ी तो जलता हुआ
पानी का दिया है....
दिल के फ़साने, जिगर की बातें
दिमाग़ की कहानी,नज़र के क़िस्से
अमां चलो कोई मतलब का काम करें
छोड़ दें ये सब डाक्टरों के हिस्से....
दिमाग़ की कहानी,नज़र के क़िस्से
अमां चलो कोई मतलब का काम करें
छोड़ दें ये सब डाक्टरों के हिस्से....
आज भी अजनबी हैं वो
कल भी अजनबी थे
कुछ राहों से हम साथ-साथ गुज़रे ज़रूर थे
दूरियों की वजह कुछ तो अना थी उनकी
बाक़ी तो सच कहूँ अपने-अपने ग़ुरूर थे....
कुछ राहों से हम साथ-साथ गुज़रे ज़रूर थे
दूरियों की वजह कुछ तो अना थी उनकी
बाक़ी तो सच कहूँ अपने-अपने ग़ुरूर थे....
ये 'सुनहरी यादें' तनहाइयों में आ ही
जाती हैं
हर बार की तरह तमाम दर्द दे जाती हैं
आख़िर ये इतना तड़पाती ही हैं
फ़िर न जाने क्यूँ सुनहरी यादें कहलाती हैं....
हर बार की तरह तमाम दर्द दे जाती हैं
आख़िर ये इतना तड़पाती ही हैं
फ़िर न जाने क्यूँ सुनहरी यादें कहलाती हैं....
हम ख़ुश थे जिस
ख़ुशी की तलाश में
वो 'ख़ुशी' मिल के 'ग़म' तमाम दे गई
आदतें तो बिगड़ गईं मगर ...
ख़ाली वक़्त काटने को 'एक काम' दे गई
वो 'ख़ुशी' मिल के 'ग़म' तमाम दे गई
आदतें तो बिगड़ गईं मगर ...
ख़ाली वक़्त काटने को 'एक काम' दे गई
मेरी ज़िन्दगी
में चैन-ओ-क़रार नहीं था
सब कुछ था तेरी आँखों में बस मेरा इंतज़ार नहीं था
सच है दिल में तेरे, नफ़रतें नहीं थीं मेरे लिए
सच तो ये भी है के प्यार नहीं था.....
सब कुछ था तेरी आँखों में बस मेरा इंतज़ार नहीं था
सच है दिल में तेरे, नफ़रतें नहीं थीं मेरे लिए
सच तो ये भी है के प्यार नहीं था.....
वो
कह के चले गए कि मुझे याद रखेंगे
पलकों
में सजा के मेरे ख़्वाब रखेंगे
हमने
भी सौंप दी अपनी नखत उनकी सांसों को
उम्मीद
में कि ज़िन्दा उसे मेरे बाद रखेंगे….
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बढ़िया सोच-
जवाब देंहटाएंअच्छे ख्यालात-
शुभकामनायें-
भाई-
बहुत-बहुत धन्यवाद रविकर जी!!!
हटाएंवो कह के चले गए कि मुझे याद रखेंगे
जवाब देंहटाएंपलकों में सजा के मेरे ख़्वाब रखेंगे
हमने भी सौंप दी अपनी नखत उनकी सांसों को
उम्मीद में कि ज़िन्दा उसे मेरे बाद रखेंगे….
दिल का दर्द लफ़्ज़ों में उभर आया
आज भी अजनबी हैं वो कल भी अजनबी थे
जवाब देंहटाएंकुछ राहों से हम साथ-साथ गुज़रे ज़रूर थे
दूरियों की वजह कुछ तो अना थी उनकी
बाक़ी तो सच कहूँ अपने-अपने ग़ुरूर थे....
हम ख़ुश थे जिस ख़ुशी की तलाश में
वो 'ख़ुशी' मिल के 'ग़म' तमाम दे गई
आदतें तो बिगड़ गईं मगर ...
ख़ाली वक़्त काटने को 'एक काम' दे गई
वाह वाह ,क्या बात है ...ये पंक्तियाँ खास पसंद आईं ..
शुक्रिया शारदा जी....
हटाएंबेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन. खुबसुरत रचना.
जवाब देंहटाएंसादर.