ऐसी तपिश में मुझको, मेरे अश्क़ों से भिगो रहे हैं
वो कहते हैं बा-ख़ुदा हम उन्हें प्यारे बहुत
हैं.....
आसमां से उनकी ख़ातिर तारे भी तोड़ लायें
लेकिन दामन में उनके चाँद-तारे बहुत हैं....
सदियों से वजूद खोकर, मीठे दरिया फ़ना हुए हैं
फ़िर भी आज तक समन्दर, खारे बहुत हैं......
सदा-ए- मुहौब्बत तुम सुनते भी तो कैसे दिलबर
सब जानते हैं कानों में तेरे, दीवारें बहुत हैं....
मिल जाए जो कहीं तो मिलकर सज़ा दें हम सब
इस महफ़िल में आकर देखो, वक़्त के मारे बहुत हैं....
कश्ती फंसी भंवर में, गुमराह मेरा रहबर
या ख़ुदा रास्ता दे, इस दरिया में किनारे बहुत हैं
सदा-ए-मुहब्बत तुम सुनते भी तो कैसे दिलबर
सब जानते हैं कानों में तेरे, दीवारें बहुत हैं....
वाऽह ! क्या बात है !
आपकी रचनाओं का क्या कहना …
:)
हार्दिक मंगलकामनाएं !
बहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ