उड़ गईं नींदें रातों की,था इतना चढ़ा उधार
लोटा थाली बेच मुंगेरी, रोज़ करे व्यापार
घाटे पर घाटा सहे, पड़ी वक़्त की मार
आत्मघात करने चला, बेबस और लाचार
कहा किसी ने राजनीति में हाथ-पैर कुछ
मार
चौबीस घंटे राजनीति ही उसका अब
रोज़गार
दिन-दूनी और रात चौगुनी ख़ूब भरे
भण्डार
पढ़े विलायत बेटा उसका, लिए फ़रारी कार
नेताइन समाजसेवी बन पहनें, हीरों जड़ा हार
ना ही कर-आय की चिंता, ना ही कर-व्यापार
बड़े मुलाज़िम करें प्रेम से, सादर नमस्कार
मुंगेरी के सपने सारे, हो गए अब साकार
राजनीति तो आज है भईया,सबसे उम्दा
व्यापार
राजनीति इसको कहें या कलयुग का
चमत्कार।
बहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें
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