रात बाक़ी न रही, कोई बात बाक़ी न रही
टूटे हुए ख़्वाबों की भी बारात बाक़ी न रही
मेरी महफ़िल में तुम आते भी तो कैसे दिलबर
टूट गए पैमाने और साथ साक़ी न रही
कर दे सुराख़ जो अब पत्थर के कानों में
किसी आवाज़ में वो औक़ात बाक़ी न रही
इक दिल था जो हज़ार टुकड़ों में बंटा
मेरे पहलू में कोई ज़कात बाक़ी न रही
तेरे इश्क़ की आंधियां चलीं कुछ इस तरह
ज़िन्दगी में जज़्बात-ओ-सबात बाक़ी न रही
तू न सही, तेरा ग़म ही मयस्सर मुझको
तुझसे पाने को कोई सौग़ात बाक़ी न रही
हिन्दू हुआ कोई तो कोई मुसलमां हुआ
हुआ तो यह इन्सां की ज़ात बाक़ी न रही
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टूटे हुए ख़्वाबों की भी बारात बाक़ी न रही
मेरी महफ़िल में तुम आते भी तो कैसे दिलबर
टूट गए पैमाने और साथ साक़ी न रही
कर दे सुराख़ जो अब पत्थर के कानों में
किसी आवाज़ में वो औक़ात बाक़ी न रही
इक दिल था जो हज़ार टुकड़ों में बंटा
मेरे पहलू में कोई ज़कात बाक़ी न रही
तेरे इश्क़ की आंधियां चलीं कुछ इस तरह
ज़िन्दगी में जज़्बात-ओ-सबात बाक़ी न रही
तू न सही, तेरा ग़म ही मयस्सर मुझको
तुझसे पाने को कोई सौग़ात बाक़ी न रही
हिन्दू हुआ कोई तो कोई मुसलमां हुआ
हुआ तो यह इन्सां की ज़ात बाक़ी न रही
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बहुत सुंदर गजल |
जवाब देंहटाएंஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ