मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

मेरा रात का हमसफ़र


अब मेरी रात के हमसफ़र नहीं आते 
रात क्या वो दिन में भी नज़र नहीं आते 
चौक चौराहे पर तो दिखते थे अक्सर 
न जाने क्यूँ अब मेरे घर नहीं आते 

नींद तो आती है पुरसुकूं, मगर ताज्जुब है   
मेरे ख़ून के रिश्तेदार मच्छर नहीं आते...
मैंने सोचा मालूम करूँ के माजरा क्या है 
आख़िर वो मेरे घर क्यूँकर नहीं आते...

दिल में तसव्वुर उनका,लिए मिलन की मस्ती
ढूँढते हुए जनाब मैं जा पहुँचा मच्छरों की बस्ती 

क्या कहूं-कैसे कहूं, अजब वहाँ का सीन था 
मर रहे थे भूखों मच्छर,मंज़र बड़ा ग़मगीन था
ज़िन्दा बचा था जो भी मच्छर,हस्पताल में आसीन था 

वहीँ कोने में कराहता मच्छरों का राजा मिल गया 
मैंने पूछा क्या हुआ,सब हाल तो बतलाओ ज़रा 
भावुक हो,राजा ने रोकर अपना सुनाया दुखड़ा बड़ा 
ख़ून पीते थे हम ख़ुशी से पर ऐसा हुआ कुछ वाक़िया
ख़ून पीने की तो छोड़ो, सूंघने को मिलता न था 

एक-एक करके मच्छर भूखों यूँ मरने लगे 
कुछ नादाँ तो हड्डी में गड़ाकर डंक डैमेज कर गए 

आनन-फ़ानन जाँच को, मैंने 'डेंगू समिति' बनाई
आप इंसानों के उलट, रिपोर्ट तीन घंटे में आई

रिपोर्ट का भी सुन लो जी , आया कुछ ऐसा फ़लसफ़ा
भ्रष्ट नेता मिल पी गए ख़ून पूरी अवाम का
उसके आगे का भी सुनो क्या हुआ सब हादसा 

डेंगू, मलेरिया जैसे पढ़े-लिखे भी ऐसी ग़लती कर गए 
ख़ून पीने की गरज़ से नेताओं के सब घर गए 
ख़ून क्या था, ज़हर समझो,उनका बदन छू कर मर गए 

मैं जो ज़िन्दा बच गया उसका भी एक कारन है 
कभी तो भ्रष्ट नेता मरेंगे कि उम्मीद पे दुनिया क़ायम है...   




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