शनिवार, 19 नवंबर 2011

टूटते हैं पत्ते पुराने



पंछी आते हैं साख पर, बैठते हैं, उड़ जाते हैं
टूटते हैं पत्ते पुराने, नए सिलसिले जुड़ जाते हैं...

ख़ुदगर्ज़ी की बिसात पर अपने हार जाते हैं
कुत्ते-बिल्ली फ़क़त घर-द्वार, कार, प्यार पाते हैं 
फ़ैलते हैं घर-बार,परिवार,यार पर दिल सिकुड़ जाते हैं...
टूटते हैं पत्ते पुराने, नए सिलसिले जुड़ जाते हैं...

लाशों के ढेर पर, कुर्सी सत्ता की टिक जाती है
चन्द सिक्कों की ख़ातिर, आत्मा बिक जाती है
तामीर होती है इमारत कोई, कई झोपड़े उजड़ जाते हैं...
टूटते हैं पत्ते पुराने, नए सिलसिले जुड़ जाते हैं...

पंछी कुछ क़ैद में, कुछ के पर क़तर दिए जाते हैं
खिलते हैं गुल कहीं तो कुछ खिल ही कहाँ पाते हैं
शूल सवालों के ऐसे अक्सर, मेरे दिल में गड़ जाते हैं...
टूटते हैं पत्ते पुराने, नए सिलसिले जुड़ जाते हैं...

मुहौब्बत के सोज़-ओ-सराब में लोग जिए जाते हैं
जाने क्यूँ नफ़रतों के सबक़ हर क़दम पे दिए जाते हैं
चलना चाहते थे हम भी सीधा मगर कमबख्त रास्ते मुड़ जाते हैं  
टूटते हैं पत्ते पुराने, नए सिलसिले जुड़ जाते हैं...

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