शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

अमर शहीदों के लिए...

कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर ना आये..... 
जो लौट के घर ना आये...


आँखों में आँसू, ज़ेहन में कितने सवाल लाया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है

राहें उसकी तकते तकते, बूढ़ी आँखें पथराई होंगी
उसे सुलाने को माँ ने कभी लोरियां गाई होंगी
उसकी तुतली बोली पर सब कुछ वार दिया होगा
उसको भी तो माँ ने ख़ुद से ज़्यादा प्यार किया होगा
उस माँ के मन में आज वही बनके भूचाल आया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है

उसने भी अपनी गोरी से वादे तमाम किये होंगे
कुछ साल ज़िन्दगी के रंगीं उसके नाम किये होंगे
दफ़्न हुई आवाज़ कहीं औ सुर साज रूठे होंगे
कितने वादे कितने सपने कहीं आज टूटे होंगे
किन्तु प्रतिज्ञा पूरी करके वो कर कमाल आया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है

उसकी गुड़िया सी गुड़िया आँगन में तो खेलेगी
पर इस दुनिया के तूफ़ाँ जाने वो कैसे झेलेगी
अपने प्यारे बिट्टू को प्यारी फटकार लगाई होगी
उसने अपने पापा से चिठ्ठी में कार मंगाई होगी
पर हाय हाय कैसा समय का ये कुचाल आया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है
नहीं नहीं ये तो अपने देश का लाल आया है
वीर शहीदों की अमर थाती संभाल आया है
मात भारती का ऊँचा ये करके भाल आया है
शत शत नमन है ये अपने देश का लाल आया है।

रचना- निर्दोष दीक्षित
तिथि- 09.10.2014

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