मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

इश्क़ में......


स्याह रातों पे मेरी, तेरे ख़्वाबों का पहरा है
रोज़ देखते हैं हम, यह ख़्वाब सुनहरा है

अब मान जाइए यूँ जलवे न बिखेरिये
रहम कीजिये, अभी ज़ख्म ज़रा गहरा है

दिल के टूटने की खनक, संगीत समझिए
मुहौब्बत का सबक़ है ये इश्क़ का ककहरा है

अभी ज़रा रुकिए, यूँ दिल में न जाइए
इक दर्द है मेरे दिल में, जो बरसों से ठहरा है

मेरी तनहाइयों में अब शोर-गुल तमाम है
सरे-राह, बाज़ार में सन्नाटा सा पसरा है

मुहौब्बत आदत है पुरानी, अब छूटती नहीं
ये दिल है बड़ा पगला, न सुधरेगा,न सुधरा है

यूँ मुहौब्बत से मुझसे, मत पेश आइये
मुश्किल से जां बची है, जाने का ख़तरा है

चाहत हो ख़ुदकुशी की, तो इश्क़ कीजिये
पसंद आये तो लीजिए, मुफ़्त मशविरा है 

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