दुनिया बदल रही है, मंज़र बदल रहा है
मंज़िल नहीं है कोई, हर बशर चल रहा है...
क्या ख़ूब रंगरलियाँ, रौशनी है दिलकश
आहें ख़ुदारा कैसी? किसी का घर जल रहा है?
मासूमियत है ऐसी, लोगों का मिज़ाज ऐसा
आतिश को देखकर ज्यों बच्चा मचल रहा है
अब दूर-ए-नज़र से देखा, सब साफ़ हो रहा है
मर रहा है कोई, किसी का मतलब निकल रहा है
जिस देहली को पकड़े उम्र तमाम हो गई
मेरा भी दिल अब तो वो दर बदल रहा है
आँखों में रात लेकर, बैठा रहा वो शब भर
सुबहो को जाने क्यूँ-कर चादर बदल रहा है
पागल कहे है कोई, दीवाना जाने कोई
अंधों की बस्ती से वो, बन-संवर निकल रहा है
सफ़र बीच में हूँ, तुझसे मिलन की जानिब
या ख़ुदा!, नाखुदा अब तेवर बदल रहा है
हाय रे, अब क्या हो, जाने ख़ुदा अब तू ही
इल्म-ओ-क़लम किताबें देकर, वो खंज़र बदल रहा है
दुनिया है सारी प्यासी, भटके फिरे है दर-दर
काम है ये किसका,हर कुवें से ज़हर निकल रहा है
nice
जवाब देंहटाएं