पीड़ा ये आह!
बुझती हर चाह
नीरव चक्षुबहते अश्रु,
मन के बवंडर
स्वप्नों के खण्डहर,
संकीर्ण लोग
ऋण व योग,
धुंधले चित्र
मित्र विचित्र,
पग-पग रण
मन के व्रण,
छल ये भीषण
और विभीषण....
अनजान सा भय
लगे शत्रु समय।
क्या-क्या सहूँ
अब क्या कहूँ;
आवारा सोच को
सपनों का नाम दूँ
या जीवन वृत्त
प्रारब्ध मान लूं.....
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जवाब देंहटाएंपग-पग रण
मन के व्रण,
छल ये भीषण
और विभीषण....
अनजान सा भय
लगे शत्रु समय ...
Awesome...
Great creation..
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aapne meri lekhani ko saraha
जवाब देंहटाएंuske liye aapko bahut bahut dhanyavaad......