तेरी आँखें हैं दरवाज़े किसी मंदिर के
खुली रखना ज़रा मेरे माबूद का दीदार होने दे...
ऐ मेरे महबूब ज़रा देर और ठहर
मुझे अपने वजूद से प्यार होने दे....
सुन लेना मेरा फ़साना भी एक दिन
मुकम्मल इसे मेरे यार होने दे...
ख़ुश्क थीं आँखें तेरे इंतज़ार में
गले मिल के मुझे ज़ार-ज़ार रोने दे...
आख़िर मुहौब्बत हिजाब में पलेगी कब तलक
इसका चर्चा अब सरे बाज़ार होने दे...
ग़म के बिना ख़ुशियों की क़ीमत क्या है
ग़मों से भी मुझे दो-चार होने दे...
कुछ देर सब्र कर ऐ मेरे मस्जूद
सब्ज़-बाग़ ज़रा मेरे गुलज़ार होने दे...
उनका सजदा भी होगा एक दिन मेरी ख़ातिर
बस मेरी क़ब्र को मज़ार होने दे...
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