प्रीत है पुनीत रीत, गाओ मीत प्रेम- गीत
भीत-भय त्याग कर, सुप्रेम वृष्टि कीजिये
अंग-अंग रंग भर, मन में उमंग भर
तरंग ढंग ले नई, नवीन सृष्टि कीजिये
मानकर प्रथा यथा, व्यथा कथा न हो वृथा
हूँ न कुछ न था कभी, दया सुदृष्टि कीजिये
चित्र है विचित्र मित्र, लोग भेद भाव लिप्त
मातृभूमि के निमित्त, अब समष्टि कीजिये
- निर्दोष दीक्षित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें