tag:blogger.com,1999:blog-5339031668806243832.post8953880212237569747..comments2023-10-25T03:41:26.775-07:00Comments on मीठा भी गप्प,कड़वा भी गप्प: बाज़ारवाद और स्त्री निर्दोष 'कान्तेय'http://www.blogger.com/profile/12905557187487767716noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5339031668806243832.post-10633340361269920082013-02-27T22:52:17.806-08:002013-02-27T22:52:17.806-08:00वाह साहब मान गए, सचमुच ये बाजारवाद ही है जो अब समा...वाह साहब मान गए, सचमुच ये बाजारवाद ही है जो अब समाज के हर व्यक्ति के सर चढ़ कर बोल रहा है, चाहे वो सुबह की चाय हो या रात को सोने के लिए इस्तेमाल में आने वाला मत्रेस हो, चाहे वो पहनने के लिए कपडे हो या उन्हें धोने के लिए डिटर्जेंट पाउडर, चाहे वो दांतों को साफ़ करने का दंत्मजन हो या फिर मुह धोने का साबुन सब बाजारवाद के ही पूरक हैं, जो हम सबकी मानसिकताओं पैर हावी हुए जा रहे हैं.........उनियाल Sahabhttps://www.blogger.com/profile/13351759034340565921noreply@blogger.com