रविवार, 7 अप्रैल 2013

नेतागीरी का चस्का


अबकी कइयौ महीना बाद गाँव गेन, आम की याक बाग है, जादा बड़ी नहीं है। स्वाचा धोवाय आई तौ लरिका-बच्चन का खाय-पियै भरे का आम होई जइहैं, औ जो ठीक-ठाक फसल होई गै तौ चार पइसौ मिलि जइहैं...

द्याखा बऊर तौ ठीकै-ठाक आवा है, सोचेन लगे हाथ गोड़ाई कराय के पानिऊ लगवा देई मुला याक समस्या होई गै..... गाँव मा तमाम खोजबीन कीन लेकिन मजूरै नहीं मिले…. सोचेन दुई-याक दिन रुकि कै यू काम करवाहेक लौटब औ जो कहूँ परते से सेरसौं मिलि जइहैं तौ कुंटल-खाँड़ लई ल्याब।

अगले दिन सबेरे नहाय-धोय के बिसम्भर कक्कू के घरै पहुँचि गेन। देखेन उनके घर के केवांड़ा बंद रहैं, हम उल्टे-पांव लउटि परेन तबहें गल्ली मा देखेन कक्कू हाथे मा लोटिया पकरे चले आ रहे हैं। हमका कुछ टैम पहिले की बात याद आ गै जब कक्कू ते कउनौ जैराम कक्कूकहि भर दे तौ बिगड़ि जात रहैं.... फिरौ हम तनिक सकुचात भै दूरै से कहेन- कक्कू जैराम!!

द्याखै मा लाग कक्कू बड़े खुस भे, बोले- जैराम महाट्टर भइया, तुम कबै आयेव? घर मा सब ठीक-ठाक?

हम कहेन कक्कू कल्हि आये रहन औ आपके आसिरबाद से घर मा सब मजे मा हैं..... हम आपै के घर ते आ रहे हन, देखेन केवांड़ा बंद रहैं...

-    अच्छा!! कउनौ खास बात?

-    खास बात तौ कोई नहीं बस आपके दरसन करइया रहन।

-    तौ चलौ तनी देर बैठा जाय....

(हम दूनौ जने टहलत भै उनके के घरै पहुंचेन)
कक्कू बोले- भईया तुम्हरी काकी के जाए के बाद हमरे घर की सब बेवस्थै गड़बड़ा गै है, द्याखौ घर कइस मसान होई रहा है।  

-    तौ आप औधेस क्यार बिहाव काहे नहीं कइ देतेव?

-    भईया औधेस की तौ हमते बातै न करौ, तुम तौ जनतै हौ वहिके रंग-ढंग, हमरे तो कहे मा कबहूँ नहीं रहा, फिरौ कबहूँ कुछ कहि देव तौ जूता-लात धरी है... भईया अब ई बूढ़े सरीर मा एत्ती ताब नहीं बची है कि लरिकवा की लाठी खाई...

-    कक्कू या तौ औधेस की बड़ी नलायकी है....

कक्कू थोड़ा इमोसनल होई गे, बोले- पता नहीं यू कुधरमी हमरे घर मा कहाँ ते पैदा होई गा, अबहीं दुई तीन महिना पहिले बियाहे बदि उदमादे रहैं, दुई-याक जगा बातौ चली मुला मामला फिट नहीं होई पावा औ अब ससुरऊ कहत हैं हम बिहावै न करिबे।

-    काहे, बिहाव काहे न करिहैं?..... कउनौ बिटेवा पसंद कीन्हे होय तौ हुवैं कइ देव...

-    नहीं अइस बात नहीं है, आजकल उनके दिमाग मा नेतागीरी क्यार भूत सवार है, घर मा खाए क्यार ठिकान नहीं औ सरऊ कहत हैं परधान बनि कै सब फिट कई ल्याब तबहें बिहाव करब.... दिन्नु भर हियाँ ते हुवां मारे-मारे फिरत हैं, न कउनौ काम न धाम।

-    यू नेतागीरी क्यार चस्का कहाँ ते लागि गवा?

-    अरे रामचन्दर परधान खुवां बैठक रहै ईकी.... उनक्यार टैट्टर चलावत रहै, ई चक्कर मा कि परधान कउनौ कालोनी-वालोनी दई द्याहैं.... नरेगा-फरेगा मा कहूँ नऊकरी क्यार जुगाड़ बनइहैं...... मुला तुम तौ जनतै हौ परधान एक नंबर के *#@**!#.... कइयौ साल ते टरकावत रहैं.... एक दिन भईया तउवाय गे, परधान ते कहेन इस्कूल के पाछे वाली गराम समाज की जमीन मा बिसुआ भर जमीनै दइ देव तौ परधान कानून पढ़ावै लाग. भईया कहेन तौ फिर हमार डराइबरी क्यार हिसाब कइ देव...... एत्ते मा परधान उखड़ि गे, गरिया के भगा दीन्हेन, कहेन- सरऊ डराइबरी ते जादा तौ बाप-पूत दारु पी चुके हौ....... अब हमरे दुवारे देखा न परि जायेव. बस भईया उई दिन ते लरिकवा पगला गवा है.... कहत है- अइसी की तइसी, हमहूँ परधानी क्यार अलेक्सन लड़बै... औ रामचंदर क्यार दिमाग ठिकाने लगा देबे।

-    अरे कक्कू वहिका समझाओ-बुझाओ, या परधानी-वरधानी सबके बस की बात नहीं, ब्वारन पइसा लागत है... गरीब-गुरबन के खेल न आंय ई सब.... औ दुस्मनी अलग ते बंधि जाई.... आप क्यार अक्याल लरिका!!!

-    भईया हम तौ समझा-समझाय के हारि गेन तुमहीं कुछ करौ.... अबहीं महिना भर पहिले दूनौ भइंसी बेचि डारेस औ कहूँ ते पुरान बुलट लावा है......

-    अरे सही कक्कू .... दूनौ भइंसी बेचि डारेस??

-    अरे न पूछौ सब चापर करै मा लाग है यू सत्यानासी... घर मा दुई ठईं छगड़ी बची हैं, देखेव कउनौ दिन इनहुन का लई डारी....

-    औ कक्कू कमाई-धमाई?

-    कमाई धमाई का.... बस झाड़-फूंक करिकै थ्वारा-बहुत नाजु-पानी मिल जात है, तुम तौ जनतै हौ थोरी-बारी जमीन है मुला अब हमते खेती-किसानी सधति नहीं..... मंगरे का बंटाई दीन्हे हन....

-    औ औधेस?

-    औधेस..... औधेस तौ घर मा चारि आनौ नहीं देत.... भगवान जाने का करत है का नहीं.... जउन पइसा कमात है पिटरोल औ मोबैल मा फूंकि डारत है.....

-    कक्कू आपकेर समस्या तौ सही मा बड़ी कठिन है, द्याखौ औधेस मिलैं हम बात करिबे...

-    करि लेव, तुमहूँ बात करि के तसल्ली कल्लेव....  इधर पन्द्रा-बीस दिन ते घर मा एक नवा टंटा डारे है...

-    टंटा...... कइस टंटा?

-    अरे जटासंकर( बिसंभर के भाई) क्यार लरिकवा, महेन्दर लैसेन्सी पिस्तौल लावा है तब ते भइया रैफल के पाछे परे हैं, कहत हैं अलेक्सन लड़ना है ई लिए यू सब बहुत जरूरी है..... हम डीयम औ थाने मा सब जुगाड़ भिड़ा लिया है....

-    अरे औधेस क्यार दिमाक खराब होई गा है का.... अलेक्सन क्यार बन्दूक ते का सम्बन्ध?

-    वहै तौ हमहू कहित रहै.... हम जानित है उनके काहे किरवा काटि रहा है.... चच्चू क्यार लरिका पिस्तौल लावा है तौ उई काहे पाछे रहि जाएँ....

-    सही कहत हौ कक्कू यहै बात होई....

-    हाँ अऊर का!! अरे ई नालायक के चक्कर मा हियाँ पुलिसौ आ चुकी है.... औ भईया तुम तौ जनतै हौ हम थाना-पुलिस ते केत्ता घबड़ाइत है....

-    पुलिस...!! पुलिस काहे आई रहै?

-    अरे यू रैफल क्यार लैसेन्स बनवावै खातिर फारम जमा कीन तइस वही केर जाँच आई रहै...

-    अच्छा-अच्छा ... हाँ फारम की तो जाँच होती है।

अब कक्कू के चेहरे पर फिर ते दरद छलकि आवा, बोले- भईया जाँच के बाद तौ औधेस अइस महनामति कीन्हेस कि पूछौ ना..... कहै लाग रैफल ले खातिर दखिनै वाली दुई बिगहा जमीन बेचि डारौ.... हम तौ साफ मना कइ दीन, भईया पुरिखन की एत्तिही जमीन बची है या तौ हम कौनिउ कीमत पर न ब्याचब..... चाहे जउन होई जाए.. (बात पूरी करत-करत कक्कू के नथुना फड़कै लाग) ससुरऊ कहत हैं तुम्हरे बाद सब हमरै तौ है तौ फिर हमार चीज ब्याचै मा तुमका कौन तकलीफ...... अरे एक बार परधानी घर मा आ जाए देव, अइस तमाम जमीन होई जाई.

-    गलत बात... बहुत गलत बात!!! कक्कू आप चिंता न करौ, हम औधेस ते बात करब... हाँ कक्कू आपते एक बात कहा चहित रहै....   

-    हाँ.. हाँ बिलकुल कहौ भईया...

-    कक्कू अबकी हमरी बाग मा बऊर तौ ठीक-ठाक आवा है.... थ्वारा काम करवावैक रहै मुला मजूरै नहीं मिले गाँव भरे मा...

-    अरे भईया मजूर हियाँ न मिलिहैं.... नरेगा मा सबके खाता हैं मुला काम-धाम कउनौ नहीं करत.... द्याखौ दुई-याक जने हैं कल्हि बात करिकै बतइबे...

-    ठीक है.... औ कक्कू आप का जादा तकलीफ होय तौ हम बाग मा मड़इया डरवा देबे.... तले दुई तीन महीना बाग बचायेव... हम खर्चा-पानिहू दइ देबे..

-    ठीक है महाट्टर भईया.... द्याखौ औधेस ते बात करि कै बतइबे....

हम कक्कू ते बिदा लई के हुवां ते निकरित रहै कि तबहीं उनके दुवारे याक बुलट मोटरसैकिल रुकी, बुलट पर तीन लंउडे सवार रहैं.... लल्लनऔधेस औ परताप!! 

औधेस क्यार हुलिया बिलकुल बदला-बदला रहै..... पैंट ते बाहर बगल मा कट वाली सफेद बूसट, पइजामा कट की सफेद पैंट, गले मा रुद्राच्छ की माला औ अंगुरिन मा दुई-तीन रंग-बिरंगी अंगूठी.... हुलिया नवा रहै मुला मुँह वहै पुरान पिचका वाला....

गाड़ी स्टैंड मा लगावैके के बाद हमका देखि कै अवधेस पिच्च ते गुटखा की पीक एक तरफ मुँह करिके थूकेन, जेब ते मोबैल निकारि के हाथे मा पकरि लीन्हेन औ हमरी तरफ हाथ बढ़ावत भै बोले- दद्दा परनाम.... हम तनिक अचकचा गेन औ हाथ बढ़ा दीन।

औधेस बोले- और दद्दा सब ठीक-ठाक, गाँव कइसे आना भवा?(हम महसूस कीन औधेस भोजपुरिया टोन मा ब्वालै की कोसिस कई रहा है)

-    सब ठीकै है.... बस गाँव क्यार राव-चाव ले आये रहन...

-    और बताओ नउकरी-चाकरी सब ठीक चल रही है, कउनौ दिक्कत तौ नहीं?

-    नहीं सब चकाचक चलि रहा है।

-    कोई दिक्कत होय तौ बतायेव.... भउकाल है आपका, डीयम, यसडीयम सब जानत हैं हमको....(पिच्च)... छोटे भाई के होते कोई दिक्कत न होएक चही आपका

-    हाँ-हाँ काहे नहीं.... अउर बताओ का चल रहा है आजकल?

-    बस दद्दा... आपके आसिरबाद से अबकी अलेक्सन की तयारी चल रही है... कक्कू बतायेन होइहैं..

-    हाँ... बतायेन है...

-    तौ दद्दा अबकी आपका आसिरबाद चही.... आपके बिना परधानी की सीट आपके घर मा न आ पाई।

-    बिलकुल हम तौ हमेसा तुम्हरे साथ हन....

-    दद्दा देखे रहेव.... अबकी सारी सेटिंग आपैक करना है.... औ फिर हम आपके घरौ अइबे भउजी का आसिरबाद ले खातिर....

-    हाँ काहे नहीं...

-    अरे दद्दा आप सहर जायेव तब हम आपका फोन करि कै फाइल नंबर बता देबे, अरे ऊ रैफल का फारम डारेन है न.... तनी डीयम दफ्दर मा देखे रहेव औ बतायेव.....का पोजीसन है.... किरपाल बाबू हैं हुवां.... असलहा बाबू!, जानत हैं हमका.... हमार नाव बतायेव उनते.... तड़ाका बतइहैं सब कुछ....

औधेस की बातैं सुनि कै हमार तौ मूड़ पिराय लाग हम कहेन-  अच्छा ठीक है जब छुट्टी मिली तब देखि ल्याब.... 
अच्छा औधेस अब हम चलित है फिर घरै आयेव तौ बिस्तार ते बात होई...
ठीक है दद्दा..... लेकिन भूलेव ना.... आपै के भरोसे अलेक्सन लड़ना है..... हमारि जीत आपै केरि जीत होई....

-हाँ बिलकुल काहे नहीं.... छोट भाई हौ अपन....

- अच्छा दद्दा परनाम....

-खोस रहौ भईया....

हम बहुत तेजी के साथ बिदा लीन.... याक बात देखेन बिसंभर कक्कू औधेस का देखि के घर ते बाहर नहीं निकरे, सायद ई बात ते डरा रहे होइहैं कि कहूँ औधेस हमरे सामने उनकी बेज्जती न करि दे।

  

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

इश्क़ में......


स्याह रातों पे मेरी, तेरे ख़्वाबों का पहरा है
रोज़ देखते हैं हम, यह ख़्वाब सुनहरा है

अब मान जाइए यूँ जलवे न बिखेरिये
रहम कीजिये, अभी ज़ख्म ज़रा गहरा है

दिल के टूटने की खनक, संगीत समझिए
मुहौब्बत का सबक़ है ये इश्क़ का ककहरा है

अभी ज़रा रुकिए, यूँ दिल में न जाइए
इक दर्द है मेरे दिल में, जो बरसों से ठहरा है

मेरी तनहाइयों में अब शोर-गुल तमाम है
सरे-राह, बाज़ार में सन्नाटा सा पसरा है

मुहौब्बत आदत है पुरानी, अब छूटती नहीं
ये दिल है बड़ा पगला, न सुधरेगा,न सुधरा है

यूँ मुहौब्बत से मुझसे, मत पेश आइये
मुश्किल से जां बची है, जाने का ख़तरा है

चाहत हो ख़ुदकुशी की, तो इश्क़ कीजिये
पसंद आये तो लीजिए, मुफ़्त मशविरा है 

सोमवार, 25 मार्च 2013

आओ खेलें होरी हो......





ढम... ढम... ढम... ढम...
ढम... ढम... ढम... ढम...
होssssssssssssssss....

ढिम-टपाक, ढिम-ढिम टपाक
ढिम-टपाक, ढिम-ढिम टपाक
हुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रssssss....... 

हे हे, हे हे...... 
हे हे, हे हे...... हुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रsssss......

ढिंग-चक... ढिंग-ढिंग चक 
ढिंग-चक... ढिंग-ढिंग चक
हो-हो, हो-हो 
हो-हो, हो-हो.....

अरे ओ गोरीssss... अरे ओ छोराssss 
अरे ओ गोरीssss.... अरे ओ छोराssss 
सा रा रा रा..... अरे रे.... सा रा रा रा 
सा रा रा रा..... अरे-रे... सा रा रा रा 
स र र र होsss ...... अरे रे.. स र र र होsssss......


F- आओ रे.... आज खेलें होरी हो.. खेलें होरी हो
M- ओ री गोरी हो... ओ री छोरी हो....खेलें होरी हो

M- आओ खेलो फाग.... फाग 
F- धो लो मन के दाग़....दाग़ 
M- बुझे मन की आग.... आग 
F- बैर भाव भूल सारे.... 
M- छेड़ो ऐसा प्रेम राग 
F- मस्त हों जवान सारे, मस्त हों री छोरी हो....
M- आओ खेलें होरी हो.... ओ री गोरी हो... 
.....ओ री छोरी हो... खेलें होरी हो........

F- रे ऐसा कोई रंग डारूं 
M- तन तेरा मैं रंग डारूं
F- मन तेरा मैं रंग डारूं 
M- मस्त हो जहान सारा 
F- रुत में वो भंग डारूं....
M- प्रीत-प्यार, छेड़-छाड़, आज करूं जोरा-जोरी हो 
M-आओ खेलें होरी हो.... ओ री गोरी हो... 
....ओ री छोरी हो... खेलें होरी हो........

F- सजना अनाड़ी,काटे ऐसी चिकोटी.... काटे ऐसी चिकोटी
M- सजनी बिगड़, देवे गारी मोटी-मोटी.... देवे गारी मोटी-मोटी
F- होली में प्यारी लागें बातें खरी खोटी.... अरे बातें खरी खोटी 
M- गारी भी आज लागे मोहे मीठी लोरी हो...
M- आओ खेलें होरी हो.... ओ री गोरी हो... 
.....ओ री छोरी हो.. खेलें होरी हो........
M+F- आओ रे.... आज खेलें होरी हो..
.........ओ री गोरी हो... ओ री छोरी हो....

सभी मित्रों को होलिकोत्सव की रंग भरी, मस्ती से सराबोर कोटि-कोटि बधाईयाँ......... निर्दोष दीक्षित

M- Male
F- Female
 


रविवार, 10 मार्च 2013

शिवरात्रि के अवसर पर

सभी मित्रों को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 
भोले बाबा भगवान शंकर सभी का कल्याण करें....

भोले बाबा चले 
सर्प डाले गले 
देखें दुनिया है कैसी 
नीले अम्बर तले....

ग़मज़दा है जहां
कौन ख़ुश है यहाँ
रक्त पीता है कौन
कौन तिल-तिल जले
भोले बाबा चले
सर्प डाले गले....

भूखा सोता है कौन
रहनुमा क्यूँ हैं मौन
राज करते हैं क्यों
चोरों के काफ़िले
भोले बाबा चले
सर्प डाले गले....

ये कैसा मर्ज़ है
दुनिया ख़ुदगर्ज़ है
शहीदों की चिताओं पर
लगें क्यूँ अब न मेले
भोले बाबा चले
सर्प डाले गले....

संसार देखन चले
परिवार लेकर चले
भोले बाबा चले
सर्प डाले गले.....

(चित्र गूगल से साभार)  

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

सूखी पंखुड़ियाँ....

पुरानी डायरी के पन्नों में दबी 
गुलाब की पंखुड़ियाँ....
जिनकी रंगत,
जाने कब की फ़ीकी पड़ चुकी 
ख़ुशबू भी कब की उड़ चुकी 
फ़िर भी..........
उनमे वो कशिश बाक़ी है 
उसी शिद्दत से.....
जब सामने आती हैं 
उसी एहसास की ख़ुशबू
ज़ेहन को भिगो जाती है 
इक टीस.....
जो छोड़ जाती है 
दिल में एक ठंडी सी आह
और......
लबों पर एक हल्की सी मुस्कराहट
और फ़िर....
दिल करता है उन पंखुड़ियों को 
निकाल दूं, फ़िर सामने न आने के लिए 
लेकिन.......
वे फ़िर क़ैद कर दी जाती हैं
फ़िर कभी यह करने को....
अपने उड़े हुए रंग और ख़ुशबू के साथ 
एहसासों की खुशबू......छूटती नहीं.....
माज़ी से मुस्तक़बिल का रिश्ता......
गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ......

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

गणतन्त्र दिवस और बच्चे

विद्यालय के बच्चे गणतंत्र दिवस की तैयारियों के दौरान नारे लगा रहे थे....
महात्मा गाँधी ........... अमर रहें 
चन्द्रशेखर आज़ाद ........... अमर रहें 
सुभाष चन्द्र बोस ........... अमर रहें 
सरदार पटेल ............ अमर रहें 
चाचा नेहरु ............. अमर रहें
बाबा साहिब ............. अमर रहें
********* ............. *********
********* ............. *********
********* ............ *********
मैं सोच रहा था कि-
" साल में दो दिन नारे लगाने से बच्चे क्या सीखते हैं और इससे उनके व्यक्तित्व में क्या बदलाव संभव है?"

"क्या इस परंपरा का उद्देश्य एक अच्छा अनुसरणकर्ता/रेल का डिब्बा तैयार करना है?"

"हमने विद्यार्थी जीवन में नारे लगाकर क्या सीखा है,कितनी प्रेरणा प्राप्त की है?"

"क्या सिर्फ़ कुछेक अवसरों पर नारे लगाने भर से महापुरुषों के जीवन-दर्शन/ सिद्धांत अमर हो जाते हैं?

" क्या भविष्य में इस सूची में कोई नया नाम जुड़ेगा?"

"क्या अब भारत की पावन धरती से महापुरुषों का उत्पादन नहीं हो रहा और आने वाली पीढ़ियां हमारी तरह इन्हीं महापुरुषों के अमरत्व की गाथाएं गाती रहेंगी?"

मित्रों, उपरोक्त प्रश्नों में यदि आपको कोई गंभीरता नज़र आती हो तो अपने विचार अवश्य रखें......

सोमवार, 14 जनवरी 2013

हाय मीडिया

       दिल्ली रेप काण्ड और फ़िर उसके बाद LOC काण्ड.... एक नज़रिए से देखा जाए तो यह दोनों काण्ड कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों से देश की जनता का ध्यान भटकाने वाले साबित हुए हैं।(तात्पर्य यह नहीं कि यह महत्वपूर्ण नहीं) इन दोनों घटनाओं के बाद मीडिया के माध्यम से, मँहगाई, सिलेण्डर, केजरीवाल, वाड्रा प्रकरण, गडकरी प्रकरण, विकलांग उपकरण घोटाला "आदि'' मुद्दों से जनता का ध्यान पूरी तरह भटका दिया गया है। 

       मीडिया जिस तरह ज़ोर-शोर से मुद्दों को उठाती है उसके कुछ समय बाद वे मुद्दे परिदृश्य से ऐसा ग़ायब होते हैं जैसे वे मुद्दे कभी थे ही नहीं।(उदाहरण के लिए कुछ समय पहले पूरी मीडिया, निर्मल बाबा का ख़ून पीने को आमादा दिख रही थी, टैक्स विभाग द्वारा कार्यवाही की ख़बरें भी आई थीं, क्या हुआ? कुछ पता नहीं और वो ठग आज भी पूरी शान से अपनी दुकान चला रहा है। सब तरफ़ सन्नाटा छा गया है) 

       आम आदमी को ऐसा महसूस होता है जैसे किसी फ़िल्म का ट्रेलर दिखाया गया हो, आक्रोश, जिज्ञासा और कौतूहल लिए, उसे यह समझ ही नहीं आता कि पूरी फ़िल्म देखने कहाँ जाना होगा या कभी पूरी फ़िल्म देखने को मिलेगी भी या नहीं....या सिर्फ़ जाँच कमेटी का सेंसर लगाकर सच हमेशा के लिए दफ़्न किया जाता रहेगा। जनता क्लाइमेक्स देखना चाहती है लेकिन जिस तरह से मीडिया मुद्दों को उठाकर TRP का खेल खेलती है और फ़िर कभी फॉलोअप नहीं करती, बड़े सवाल मीडिया पर भी खड़े होते हैं।