रविवार, 1 फ़रवरी 2015

माहिया


दिल तोड़ नहीं देना
सोज़ के' सागर में
यूँ छोड़ नहीं देना

क्या शोख़ नज़ारे हैं
पूछ ज़रा दिल से
हम कौन तुम्हारे हैं

हर ओर उदासी है
बोल रहे हैं वो
ये बात ज़रा सी है

मासूम जवानी है
इश्क़ ख़ता कैसी
सबकी ये' कहानी है

ये रात सुहानी है
नींद हुई बैरन
जगते कट जानी है

हैं कौन यहाँ अपने
तोड़ गये सारे
आँखों में छिपे सपने

ये दर्द पुराना है
पर उनका अब भी
इस दिल में' ठिकाना है

उम्मीद भरे नैना
प्रीत लगी तुमसे
दिल तोड़ नहीं देना

ये प्यार नहीं करना
इश्क़ हुआ जब से
अब मुश्किल है जीना

ये क़ातिल हैं रातें
आग लगाती है
बे मौसम बरसातें

- निर्दोष दीक्षित