मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

सूखी पंखुड़ियाँ....

पुरानी डायरी के पन्नों में दबी 
गुलाब की पंखुड़ियाँ....
जिनकी रंगत,
जाने कब की फ़ीकी पड़ चुकी 
ख़ुशबू भी कब की उड़ चुकी 
फ़िर भी..........
उनमे वो कशिश बाक़ी है 
उसी शिद्दत से.....
जब सामने आती हैं 
उसी एहसास की ख़ुशबू
ज़ेहन को भिगो जाती है 
इक टीस.....
जो छोड़ जाती है 
दिल में एक ठंडी सी आह
और......
लबों पर एक हल्की सी मुस्कराहट
और फ़िर....
दिल करता है उन पंखुड़ियों को 
निकाल दूं, फ़िर सामने न आने के लिए 
लेकिन.......
वे फ़िर क़ैद कर दी जाती हैं
फ़िर कभी यह करने को....
अपने उड़े हुए रंग और ख़ुशबू के साथ 
एहसासों की खुशबू......छूटती नहीं.....
माज़ी से मुस्तक़बिल का रिश्ता......
गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ......