शनिवार, 17 नवंबर 2012

या ख़ुदा रास्ता दे.....


ऐसी तपिश में मुझको, मेरे अश्क़ों से भिगो रहे हैं
वो कहते हैं बा-ख़ुदा हम उन्हें प्यारे बहुत हैं.....

आसमां से उनकी ख़ातिर तारे भी तोड़ लायें
लेकिन दामन में उनके चाँद-तारे बहुत हैं....

सदियों से वजूद खोकर, मीठे दरिया फ़ना हुए हैं
फ़िर भी आज तक समन्दर, खारे बहुत हैं......

सदा-ए- मुहौब्बत तुम सुनते भी तो कैसे दिलबर
सब जानते हैं कानों में तेरे, दीवारें बहुत हैं....

मिल जाए जो कहीं तो मिलकर सज़ा दें हम सब
इस महफ़िल में आकर देखो, वक़्त के मारे बहुत हैं....

कश्ती फंसी भंवर में, गुमराह मेरा रहबर
या ख़ुदा रास्ता दे, इस दरिया में किनारे बहुत हैं

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

रात बाक़ी न रही...

रात बाक़ी न रही, कोई बात बाक़ी न रही 
टूटे हुए ख़्वाबों की भी बारात बाक़ी न रही

मेरी महफ़िल में तुम आते भी तो कैसे दिलबर 
टूट गए पैमाने और साथ साक़ी न रही

कर दे सुराख़ जो अब पत्थर के कानों में 
किसी आवाज़ में वो औक़ात बाक़ी न रही 

इक दिल था जो हज़ार टुकड़ों में बंटा 
मेरे पहलू में कोई ज़कात बाक़ी न रही 

तेरे इश्क़ की आंधियां चलीं कुछ इस तरह 
ज़िन्दगी में जज़्बात-ओ-सबात बाक़ी न रही

तू न सही, तेरा ग़म ही मयस्सर मुझको 
तुझसे पाने को कोई सौग़ात बाक़ी न रही

हिन्दू हुआ कोई तो कोई मुसलमां हुआ 
हुआ तो यह इन्सां की ज़ात बाक़ी न रही

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मंगलवार, 13 नवंबर 2012

शुभ दीपावली





''दिन को होली रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला'' 

पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए-

ग़म में सही,ख़ुशी में सही 
जीसस यही, प्रीस्ट यही 
ईष्ट यही, अभीष्ट यही 
और कुछ होय न होय 
ज़िन्दगी में एटलीस्ट यही 
सोडा होय तो बड़ी ख़ुशी 
न होय तो नीट सही 
अंग्रेज़ी न होय तो न सही 
देसी वाली तो ज़रूर चही
रह जाती हैं बातें अनकही 
इसके बाद सब सुनै,हम कही 

न कोई बंधन होय 
न कोई नियम होय 
व्हिस्की होय या रम होय 
ठर्रा तो कम से कम होय
प्रभु इतनी दया बनाये रखना 
बस इतनी जेब में रक़म होय 

सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक बधाई... 

आप हमेशा हँसते रहें मुस्कुराते रहें।
चाहे जितना हम आपको पकाते रहें।। 
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निर्दोष दीक्षित 
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( चित्र इन्टरनेट के सौजन्य से )

रविवार, 11 नवंबर 2012

'''' सर्वश्रेष्ठ व्यापार ''''



उड़ गईं नींदें रातों की,था इतना चढ़ा उधार
लोटा थाली बेच मुंगेरी, रोज़ करे व्यापार
घाटे पर घाटा सहे, पड़ी वक़्त की मार
आत्मघात करने चला, बेबस और लाचार
कहा किसी ने राजनीति में हाथ-पैर कुछ मार
चौबीस घंटे राजनीति ही उसका अब रोज़गार
दिन-दूनी और रात चौगुनी ख़ूब भरे भण्डार
पढ़े विलायत बेटा उसका, लिए फ़रारी कार
नेताइन समाजसेवी बन पहनें, हीरों जड़ा हार
ना ही कर-आय की चिंता, ना ही कर-व्यापार
बड़े मुलाज़िम करें प्रेम से, सादर नमस्कार
मुंगेरी के सपने सारे, हो गए अब साकार
राजनीति तो आज है भईया,सबसे उम्दा व्यापार
राजनीति इसको कहें या कलयुग का चमत्कार।


बुधवार, 7 नवंबर 2012

सियासी दोहे


"राजनीतिक दल"


अलग सा इनका रंग है, अलग सी इनकी चाल 
रैपर अलग है माना, अन्दर एक ही माल.....
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''सियासी प्रतिस्पर्धा''


उसका घोटाला मेरे घोटाले से बड़ा क्यूँ है?
मैं 'गिर' गया, फिर वो साला खड़ा क्यूँ है?

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''मातृभूमि प्रेम''


नेता-अफ़सर मातृभूमि से, करते प्रेम अथाह 
सोते-जगते, निश दिन करें, मात्र भूमि की चाह।
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''सबसे बेहतरीन जवाब''


चोरी करो शान से, ख़ूब उड़ाओ माल......
जवाब देने लायक़ नहीं जो पूछे कोई सवाल"
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''अनेकता में एकता''


तुम भी नेता, हम भी नेता; है अपना एक स्वभाव
जितना देश तुम्हारा,मेरा;आओ मिल-बाँटकर खाओ।
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   ''लोकतंत्र''

      लोकतंत्र में बन रहे जनता के सिरमौर।
     ऊँची कुर्सी पा रहे देखो कुर्सी चोर ।।
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शनिवार, 3 नवंबर 2012

महँगाई


महँगाई कुछ इस कदर सर चढ़ गई
नमक की ख़पत मेरे घर बढ़ गई।।

गुदगुदाते एहसास थे रूमानी ख़्वाब दिल में
क्या ख़ता की ?महँगाई डायन से नज़र लड़ गई

हर साँस भारी, हर लम्हा कठिन
बेवफ़ा बीवी सी ये गले पड़ गई।

ज़िन्दगी कचूमर पहले ही कम न थी 
अब तो चटनी सी सिल-बट्टे में रगड़ गई।